कौन कहता है चट्टाने रोती नही
चिल्लाती है चीखती है
कभी कभी चट्टान भी रोती है
जब दर्द का सैलाब
उमड़ता है उसके अंदर
लावा बन अश्रुओ की धारा
वह भी बहाती है
कष्ट कंटक जब
आते है उसकी राह में
अंतः कंपन्न से
वो भी कराह उठती है
नदियों का पानी जब
चीरता है उसके सीने को
अपना स्वरूप तब
वो भी बदल लेती है
मौसम की बाढ़ में जब
अस्तित्व का क्षरण होता है
भू स्खलन कर
चट्टाने भी कायापलट कर लेती है
~अकर्मण्य
#अB
#feature