Kya hoti mrityu hai?
क्या होती मृत्यु है?
इक भला दिन इक भली घड़ी,
भले हम बालक, भली भली सी ज़िंदगी!
जंगल की इक दिन राह दिखी!
भागने की हम को चाह लगी!
तोड़ेंगे आम, रस मीठे ,
घूमेंगे जंगल बगियाने!
इक दिन ऐसी चाह लगी!
भला रस्ता भली टोली चली!
असमंजस आया इक मोड़ ऐसा!
पवन तपन में बदल गई!
डरा जो मर्म,डर की चिल्लाहट!
इक रूह शमशान में जल रही!
देखती दीवारें मंजर कुछ ऐसा!
बाकी सब रूहें हँस रहीं!
रोते अपने रो रहा शव!
राम नाम की चित्कार लगी!
इक लम्हें में बदला जो सब!
भयानक लगे अब जिंदगी!
अभिमान में जल रही थी जवाला!
लकड़ियों को कुरेद रही!
देखा मैंने क्या होती मृत्यु!
मरी साँसे थी जो मर रहीं!
कहाँ लाया ये मोड़ हमें?
कहाँ मर गया जीवन है?
मुझे शमशान की दीवारें बता रहीं!
क्या होती मृत्यु है?
धुंआ धुंआ हुआ जब सब,
अग्नि भी भसम हो गई,
लेकर मृत्य रूह को संग,
जैसे शमशान में सो गई!
छोड़ गए उसे हवाले दीवारों के !
जो अब मिट्टी में मिल गई!
कुछ ऐसा मंजर देखा जो,
कुछ पाने की न चाह रही,
न तोड़े आम , न घूमे बगियाने ,
वो चाह शमशान में मर गई!
मुझे दीवारें बता रहीं!
हँस रही चिल्ला रही!
क्या होती मृत्यु है!
क्या होती मृत्य है
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