Vivashta
विवशता
शशि मुख पर
तु क्यों घूंघट डाले
आंचल में विरह दुख लिए
कोतुहल जीवन से
तु निकलना क्यों चाहे
नवयौवन में अर्धांगनी बन
तन मन में क्यों दुःख चाहे
इन कोमल कलाइयों पर
क्यों मेंहदी का बोझ डाले
इतरा कर चलने वाली
भीतर ही भीतर घुट घुट
तू क्यों मरना चाहे
केवल अठरा सावन देख
तु क्यों उम्र भर का मौन मांगे
~अकर्मण्य
#अB
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