जैसे के पुरानी भैंस ने दूध देना बंद कर दिया उसका सौदा कर दिया गया और हमारे घर एक नई मेहमान हमारे घर का हिस्सा बनने आई; काले रंग में चमकती भारी भरकम शरीर वाली अच्छी मात्रा में दूध देने वाली नई नवेली भैंस जिसका एक बच्चा भी था कुछ ही दिनों का
मुझे भैंसों से तो कोई लगाव नहीं था पर उसका बच्चा मासूम सी सूरत वाला जो अपनी माँ से भी अधिक चमकता था काले रंग में जिसके बदन पर नरम नरम काले बाल थे प्यारी सी आँखें थी उसने घर में आते ही मुझे आकृषित कर लिया
सबने भैंस को अच्छे से देखा परखा बहुत सी कमियाँ भी निकाली पर हमने जाने दिया क्योंकि मतलब तो दूध से था पर मुझे शायद उसके बच्चे से भी मतलब था
उसका नाम मैंने चंपू रखा और उसकी माँ का नाम चंपा चमेली। सुनकर सब हँस पड़ते थे पर मुझे वो चंपू ही लगता था ( चंपू मानो कोई कमज़ोर चश्मिश इंसान) उसके माथे के बाल ऐसे चमकते थे मानो तेल की चम्पी कर रखी हो तो चंपू नाम उसके लिए सही था।
मैंने पहले कभी किसी बछडे को हाथ नहीं लगाया पर उसके आने के 1 घंटे बाद ही मैंने उसके बदन पर हाथ लगा कर उसके एक एक बाल को अच्छे से पलोसा
उसे भी मानो बहुत अच्छा लगता वो ममता भरा स्पर्श!
धीरे धीरे चंपू मेरा दोस्त बन गया।
उसे तो अब उसका नाम भी समझ आने लगा।
मैं जब दूर से ही उसे आवाज़ देती वो अपने कान हिलाता जवाब देने के लिए!
मैं अक्सर उसके पास बैठती उसके सर पर हाथ फेरने के लिए और वो मस्त होकर नीचे बैठ जाता और सोने लगता।
जब कभी में उसके पास खड़ी हो जाऊँ और अपना काम न करूँ वो अपना सर मेरे हाथ पर लगाने लगता और जीभ से मेरे हाथ को चाट कर अपना प्यार दिखाता मानो मुझे याद करवा रहा हो के मुझे क्या करना है!
ये सिलसिला यूँही चलता रहा। सुबह उठकर सबसे पहले मैं उसके पास जाती उसे प्यार करने के लिए, जब वो इंतज़ार कर रहा होता के कब बाबा चंपा चमेली का दूध निकाल कर उठेंगे और कब उसे दूध पीने को मिलेगा। और जब बाबा उठते, वो तो दोड़ने लगता। बड़ी मुश्किल से खोलते उसे। फिर दौड़ कर, कभी कभी गिर कर, फिर झट से उठकर वो अपनी पूँछ उठा कर दूध पीने लग जाता। कितना मिठा लगता होगा उसे अपनी माँ का दूध। दूध नहीं अमृत; माँ तो ईश्वर समान होती है; दुनिया के सारे पकवान एक तरफ़ और माँ का दूध एक तरफ़!
मुझे याद आता है अम्मा के बताने पर के जब मैं छोटी थी तो बाबा भैंस के दूध की धारा मेरे मुँह पर डाल दिया करते थे और मैं उस कच्चे दूध को ही पी लेती थी। अब इस बात को याद कर न जाने मेरे मुँह का स्वाद क्यूँ बिगड़ जाता है! अब तो मुझे पका पकाया मीठा दूध भी अच्छा नहीं लगता! खैर चंपू तो उसका लाडला बेटा था। झट पट वो जितना मिल सके उतनी जल्दी से दूध पी जाता। बाबा भी उसके लिए अधिक दूध छोड़ दिया करते थे। कहते थे बछड़ो का बचना बहुत मुश्किल होता है खास कर सर्दी में। तो हमें इसे पहले से ही बलवान बनाना होगा।
पढ़ते पढ़ते कभी थक जाऊँ या कभी ऊब जाऊँ अपने कमरे की वही मैली दीवारों से तो मैं चंपू के पास चली जाती। सब मुझे पागल कहते और बाबा तो डाँट भी लगाते के इतना बछड़े के पास मत जाया कर; “infection” हो जायेगी तुम्हें!
पर न जाने क्यों मेरे कान न सुनते उनकी आवाज़ को। होती है तो होने दो मैं दवा खा लूँगी। चंपू मेरा दोस्त है; हाँ माना कुछ बोलता नहीं है ,मुझे समझता है-नहीं समझता इसकी मुझे समझ नहीं; पर बस वो मेरा दोस्त है; जैसे गली के कालू भूरू दोस्त हैं मेरे जो खाना खाने आ जाते हैं मेरे पास ;नवाब कहीं के; जब तक मैं रोटी के टुकड़े टुकड़े करके न खिलाऊँ उनको तब तक रोटी को मुँह नहीं लगाते!
पर उन्हें बुलाने पर भी मुझे डाँट पड़ती; “गली के कुत्ते हैं सौ जगह घूम कर आते हैं; न जाने कितने गंदे है ये; इनको हाथ मत लगाया कर; अगर इनके चीचड़ तुम पर आ गए तो मुश्किल हो जायेगी और उड़ कर तुम्हारे चंपू पर लग गए तो!”
कैसे समझाती मैं उन्हें के नहीं दिखती मुझे इनकी गंदगी; मुझे तो बस इनकी आँखों में छुपी मासुमियत दिखती है!
कक्षा में तो कोई मेरा दोस्त है नहीं तो मैं इन न बोलने वाले जानवरों को इनसे बिना पूछे अपना दोस्त बना लेती हूँ और देखो ये मना भी नहीं कर सकते!
खैर, बात तो चंपू की चल रही थी! हाँ तो मैं क्या कह रही थी!
सोने से पहले भी मैं चंपू को ‘good night’ कह कर आती! कभी कभी तो उसकी माँ मुझे ऐसे घूरती; के मुझसे ज्यादा स्नेह तो ये दो टांगों वाली करती है मेरे लाल से; कहीं मुझसे इसे दूर करके अपने पास न ले जाए! एक बार उसको खोल कर घुमाने का प्रयतन किया था पर उसकी माँ ने घर सर पर उठा लिया जैसे हम उसके बेटे को खा जायेंगे; न चाहते हुए भी हमें उसे बांधना पड़ा!
एक दिन चंपू को प्लोसते प्लोसते मैंने देखा के चंपू की गर्दन पर छोटे छोटे से जीव है; बस जिस बात का डर था वही हुआ; चंपू का सारा बदन चिचडों से भर गया! मैंने बाबा को बताया पर उन्होंने कुछ नही किया। सारा दिन चंपू अपना बदन दीवार से खुजलाता रहा। उसके नर्म से शरीर पर बड़े बड़े लाल ज़ख़्म हो गए। अगले दिन बार बार कहने पर बाबा ने चंपू को दवा लगाई और मुझे उसके पास जाने से साफ मनाही का हुक्म दे दिया गया। दवा तेज़ है तेरे हाथों पर लग जायेगी। एक भी चिचड अगर तुम्हारे उपर लग गया तो बड़ी दिक्कत होगी। डाँट से डरते हुए मैं भी उसके पास नहीं गई। बस दूर से नमी भरी आँखों से उसे देखती रही। दो दिन बीत गए पर वो ठीक न हुआ। मेरा उसके पास जाना अब कम हो गया।
12 सितंबर को मेरे छोटे भाई का जनमदिन आने वाला था और वो लगातार एक पिल्ला लेने की मांग कर रहा था। गाँव में उसके एक दोस्त ने नया पिल्ला खरीदा था जिसकी वजह से वो और ज़िद करने लगा।
हमने सोचा के इतना कह रहा है तो ले लेते हैं। वो अपने उसी दोस्त के घर गया। उसकी माँ से बात की। उन्होंने बताया के उनके किसी रिश्तेदार के पास पिल्ले बिकाऊ हैं। उसने घर आकर अम्मा को बताया और वो ठीक कीमत पर पिल्ला लेने को मान गयी!
अब ये तय करना था के कुत्ता लेंगे या कुतिया!
देखा! जानवरों में भी भेद भाव!
खैर कुतिया के बच्चे होंगे!हमें वो बेचने पड़ेंगे और माँ से बच्चा दूर कर देना तो पाप है पाप! सोचा कुत्ता ले लेते हैं पर कीमत सुनकर हमने अपना फैसला बदल लिया! अम्मा अपनी तंख्वा का कुछ हिस्सा पहले लेकर आई नये घर के सदस्य को खरीदने के लिए! हमनें उनके रिश्तेदार का फोन नंबर ले लिया और उन्हें फोन करके पूछा; वो बोले कल। मेरे भाई का जनमदिन आ गया पर उसका तोहफा अभी तक नहीं आया; हमनें उन्हें फिरसे फोन कर पूछा; वो बोले कल! खैर और इंतज़ार नहीं करना पड़ा और वो कल आ ही गया!
भाई के दोस्त का फोन आया के उनके रिश्तेदार उनके घर आ गए हैं; पिल्ला लेकर। भाई तो खुशी से उछल पड़ा। मैंने जल्दी से एक लाल टोकरी जिसमें मेरी किताबें रखी हुई थी, उसे खाली कर भाई को दे दिया। वो बाबा के साथ निकल पड़ा एक नन्ही जान को लेने और कह कर गया जल्दी करो थाली सजा कर रखना उसका स्वागत करना है। मेरी धड़कन तो तेज़ हो गयी थी। मैंने थाली में चावल, हल्दी रख ली और ग्लास में तेल डाल कर भी। जब बाहर आवाज़ आई के वो आ गए हैं मैं और अम्मा भागे दरवाजे की तरफ़! लाल टोकरी में एक सफेद मुलायम रुई का गोला; एकदम छोटी सी नन्ही सी जिसे देखते ही मानो सारा घर चहकने लगा!
मैंने जल्दी से उसके सर पर हल्दी का हलका सा टीका लगाया ; कहीं उसके सफेद रंग की पीला दाग न लग जाए; अम्मा ने दरवाजे के दोनो तरफ तेल बहाया; और हम उसे अंदर ले आये!
हर कोई उसे हाथ लगा कर देख रहा था; कितनी मुलायम है वो!
फिर वक़्त आया उसका नाम रखने का!
हमनें बहुत से नाम सोचे मैग्गी, ओली फलाना फलाना। फिर आखिर मैंने उसका नाम ‘चैरी’ रखा।
अब सारा ध्यान चैरी की तरफ़ ही रहने लगा। चंपू की तरफ़ जाना बहुत कम हो गया।
अम्मा बाबा कहते रहते के उसके चीचड चैरी पर आ जायेंगे।
वो सारा दिन गुमसुम सा खड़ा मुझे चैरी के साथ खेलते देखता रहता। उसकी आँखों में जलन दिखती थी मुझे । और उदासी भी। कभी कभी अम्मा बाबा से छुप कर मैं उसको पलोस आती पर अब पहले वाली बात न रही।
हमनें गाँव में एक पुराना घर खरीदा; भैंसों को उधर बाँधने के लिए। क्योंकि एक नई भैंस खरीदनी थी और हमारे घर में और जगह नहीं थी। तो हमको नई जगह खरीदनी पड़ी।
मुझे इस बात का बहुत दुख हो रहा था। शायद डर था के चंपू भी चला जायेगा उस घर में और मैं उसके पास नहीं जा पाऊँगी!
और वही हुआ। वो दिन आ गया जिस दिन नई भैंस को लेकर आये। उसकी एक बछडी भी थी। चंपू की छोटी बहन।
उसको नये घर में बाँधा गया।
और इधर बाबा चंपू की माँ को फिर चंपू को खोल कर लेकर जाने लगे। मैं चुप थी; शायद आँखों की नमी खामोशी पर भारी पड़ रही थी।
शाम को मैं अम्मा दादी उस घर में गए और मैंने चंपू को प्यार से सहलाया!
क्या मेरा बच्चा मेरे बिना इस अकेले सुने से घर में रह लेगा! वो घर देखकर ऐसा लगता था मानो यहाँ सालों से भूत प्रेत ही रह रहे हों!
हम घर वापिस आ गए। और दिन चंपू के बिना गुजरने लगे। जब एक चीज़ की कमी को दूसरी चीज़ पूरी कर दे; तो पहले वाली का ख्याल कम आता है; ऐसा ही कुछ चैरी ने किया; चंपू की तरफ जाना कम हो गया; मेरे कहने पर भी बाबा मुझे उसके पास न लेकर जाते; गाँव के बीच था घर; ऐसे लड़की घूमती कहाँ अच्ची लगती है; शायद इस सोच की वजह से मुझे चंपू के साथ मिलने से रोका गया |
एक दिन बाबा ने बताया के चंपू की तबियत ठीक नहीं है, वो कुछ खा पी नहीं रहा और ठीक से खड़ा भी नहीं हो रहा, उन्होंने बहुत से देसी नुस्खे आज़माये लेकिन उसकी हालत में कोई सुधार नहीं हुआ। उसके पेट में जैसे कोई गाँठ बंध गयी थी। न कुछ खाता न बाहर करता। डॉक्टर से फिर इंजेक्शन लगवाए उसको। थोड़ा सा ठीक हुआ लेकिन फिर बीमार पड़ गया।
शायद होनी में वही लिखा था जिस बात का मुझे डर था। बछड़े आसानी से बड़े नहीं होते, हो भी जाए तो उनका जीवन कुछ खास नहीं होता, उन्हें मार ही दिया जाता है,
तीन चार दिन ऐसे ही बीत गए, वो बीमार रहा और बीमार होता गया, हमने सारी कोशिशें की उसे बचाने की लेकिन वो ठीक न हुआ। अगले दिन मैं रसोई में चाय बना रही थी। बाबा आये और दादी को बताने लगे के बछड़ा मर गया है।
मैं रसोई में खड़ी सब सुन रही थी। ये बात सुनकर जैसे मेरी दुनिया हिल गयी हो। मेरा बच्चा, मेरा चंपू, मुझे छोङ कर कैसे जा सकता है, मैं तो उसे देखने भी न गयी, उसे आखिरी बार पलोसा तक नहीं, क्या कहता होगा वो, क्या सोचता होगा मेरे बारे में, के इंसान मतलबी हैं! एक नई और आकर्षक चीज़ आ जाने से वो पुरानी को भूल जाते हैं, कितना तड़पा होगा मेरा बच्चा,” तुम आई नहीं मुझे बचाने, मैं तुम्हारी राह देखता रहा, जब से इस घर में आया हूँ, मुझे तुम कहीं नज़र नहीं आती, मुझे बहुत याद आती है तुम्हारी और तुम्हारे हाथों की, मैं बीमार रहा और तुम मिलने भी न आ सकी, अब मैं इसी इंतज़ार में ये दुनिया छोङ कर जा रहा हूँ, शायद ये दुनिया मुझ बेज़ुबाँ के लिए है ही नहीं, जा रहा हूँ मैं, मुझे आखिरी बार देखने आ जाना”
पर कैसे देखने जाती मैं अपने बच्चे के मृत तन को, इतनी कठोरता नहीं थी मुझमें, क्या कहेगी उसकी रूह, के जब बीमार था तब देखने नहीं आई अब मर चुका हूँ अब क्यों आई हो? मैं नहीं गयी उसे देखने, उसे दफना दिया गया, उसकी माँ ने दो दिन तक कुछ नहीं खाया, कैसे खा सकती थी, उसका नाज़ुक बाल, जिसने अभी आधा जीवन भी न जिया उससे दूर हो चुका था;
वो चला गया लेकिन मुझे जानवरों से प्यार करना सिखा गया,
अब भी बहुत याद आती है उसकी, वो जहाँ भी हो खुश हो|
By #Lotus on 31st July 2021
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